A PLEA...

Just that I am a girl
Am I not a part of you?
Why do you want to kill me?
Won’t it ever hurt you?
Give me life,mom
I’ll never let you down
I’ll always make you proud
Adding a feather in your crown
I want to sleep in your lap
Will you make my wish come true?
You’ll ask for me one day
When girls will be just few..
I want to live
I’ll always be with you
Can’t you feel my heart?
Mother?Aren't you?
~~payal~~

"GRAY"

They bribed the lords for a piece of heart

Which they could call their very own

Lord granted their wish with a price tag

And said one day they will be disowned


They nourished and protected their piece of heart

With love they prepared it to fight against fears

Now disowned they live in another home

No one to lend them a patient ear


Plastic smiles on the wrinkled faces

With countless questions in their eyes

Half dead or half alive?

Lean bodies in colorless dyes…


The eclipsed lives wait patiently

For the death god to free their burdened souls

They try to laugh with unbearable pain

Virtues of children, their lips extol


To the rest it seems a worthless bargain

As when they die,the dooms day befall

Abandoned they are burnt in the woods

Their “piece of heart” don’t hear their call

~~payal~~

QUEST




From where does the power come
That turns a soft cool breeze
Into a raging storm?

How do the circumstances appear
The wind sweeps off the sand
O Aeolus! thy art in dunes perform

Chaos in the silent sea
Echoes the uproars
The boundaries modify and reform

Do they hold it within or
A force beckons them
When their path is objected
They tend to transform?
~~payal~~

LIFELESS LIES....



Absorbed by the tired images
The countless timeless sighs
Tiptoed gently and screamed
In the sulky silent cries

Eyes stared hesitantly
At the stains and overlooked
While chasing the shadows
Those were lost in the woods

A tinge of silver on black then flashed
The cracks showed up clear
On the barren land
With the shades of red

The countdown had begun
But the time has ceased
All for the lifeless lies
That now rest in peace…

“Pieces”??
~~payal~~

सपना क्या है??

सपना क्या है?
एक ख्याल ही तो है
कभी आंखों में पलता हुआ
कभी दिलों में जलता हुआ
कभी आंसुओं में ढलता हुआ
कभी खुशियों में मुस्कुराता हुआ
कभी सोते से जगाता हुआ
कभी गहरी नींद में सुलाता हुआ
एक साया सा?
जो ख्यालों में गहराता जाता है
और ख़ुद में इतना समा जाता है
की इंसान जकड़ा रह जाता है
जब किसी का सपना टूटता है
तो कैसा लगता है?
कांच के टूटे टुकड़ों की तरह
क्या आंखों में चुभता है?
या फिर एक लम्बी रात की तरह
अंधेरों में ही बसता है?
और मानव मन ख़ुद ही रोता है
तो कभी ख़ुद ही ख़ुद पर हँसता है
हर सपने की भी कीमत होती है शायद
हकीक़त कीरा से टकराकर
क्या सपना अधूरा रह जाता है
और अपनी कीमत चुकाता है?
सपना सिर्फ़ सपना होता है
पर हाँ, खुशी का या गम का
एक लम्हा वो अपना होता है….
~~पायल~~

कुछ शब्द


.....कुछ शब्द
जिंदगी को टटोलते हुए
कुछ एहसास
शब्दों में खोये हुए
कुछ वादे
एहसास में पिरोये हुए
कुछ सपने
उन वादों में जागते हुए ढूंढती हूँ
फिर अपनी बंद मुट्ठी को खोलकर
उन सपनों को देखती हूँ
हवाओं में घुलते हुए
…..रंग बिखेरते हुए....
हवाओं में घुलते हुए
उन सपनों को देखती हूँ
फिर अपनी बंद मुट्ठी को खोलकर
उन वादों में जागते हुए ढूंढती हूँ
कुछ सपने
एहसास में पिरोये हुए
कुछ वादे
शब्दों में खोये हुए
कुछ एहसास
जिंदगी को टटोलते हुए
कुछ शब्द.....
~~पायल~~

बस यूँ ही

दिन के पहले पहर में
उजले सपनों की चादर ओढे
जब नींद गहराती है
मदहोश कर जाती है
तभी खिड़की पर दस्तक देती
उजाले की पहली किरण
चिडियों की चहचहाहट और
घास पर बिछी ओस की बूँदें
खींचती हैं मुझे अपनी ओर
खिड़की खोल
जब देखती हूँ
एक सर्द हवा का झोंका
मेरे बालों को छूता हुआ
गुज़र जाता है
और फिर अचानक
उस एक पल में
फूलों की महक से
मेरा कमरा भर जाता ही
उस महक में ढूंढती हूँ
एक कोमल सा स्पर्श
कुछ गुज़रे हुए पल
कुछ महकी हुई यादें
कुछ बहकी सी बातें
कुछ ख़ास नहीं
बस यूँ ही....:)
~~पायल~~

जीवन चक्र

एक ठूंठ
सड़क के बीचों बीच खड़ा
जूझता हुआ अपने आज से
दीमक का घर सा
बीते हुए कल की सुनहरी यादों में
जीता है अपने जीवन को

जब चिडियाएँ चहचहातीं थीं
घोसले बनाती थीं
उन हरी भरी डालियों पर
कभी सावन के झूले पड़ते
कभी प्रेम के रंग दिखते
तो कभी अलगाव का गम
कभी ओस की बूँदें टपकती
कभी सावन की बूँदें सजती

वह जो करता जीवन अर्पण
आसरा देकर पथिकों को
कभी सुनता सूखे पत्तों की सरसराहट
तूफानों से जूझता हुआ
खड़ा रहता अडिग, निःस्वार्थ

यह वृद्ध ठूंठ
असहाय,निर्बल
अपनी ज़मीन को छोड़ता हुआ
अपने इर्द-गिर्द नए जीवन
को ढूंढता है

फैली हुई उसकी जड़ों में से
फूटी कोपलें
एक सुखद एहसास दिलाते हुए
चैन की नींद सुलाती हैं..

पास खड़ा हुआ एक
लहलहाते वृक्ष में
देखता है अपना आने वाला कल….
और सोचता है अपना बीता हुआ कल ....

~~पायल~

एहसास

ज़ख्म कुछ गहरे मिले इस दिल को
दर्द का इलाज करती हूँ
मेरे हर शिकवे में तू ही है
तेरे हर गिले में मैं ही हूँ


ढूंढती हूँ आज मैं ख़ुद को
ख्यालों में फिर खो जाती हूँ
तू हर पल मेरे पास है
मैं हर पल तेरे साथ हूँ


कोई क्या जाने इस एहसास को……
महसूस कभी यूँ करती हूँ….
जैसे कहीं तू मुझ में रहता है
और कहीं मैं तुझ में रहती हूँ….

~~पायल~~

दायरा


सिमटे हुए दायरों में कभी
कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते हैं
जो न तो भूले जाते हैं
और न ही याद आते हैं


कहना चाहो कुछ भी
तो और चुप हो जाते हैं
बात पूरी हो जाती है
शब्द कहीं खो जाते हैं

कुछ अनसुनी बातों में
मतलब उलझ से जाते हैं
वक्त के सैलाब में
रिश्ते गुम हो जाते हैं...
~~पायल~~

..एक रिश्ता

आंसुओं से एक रिश्ता है,
आंसुओं में एक रिश्ता है
रिश्ता जज़्बात का,
रिश्ता एहसास का,
आंखों का दिल से,
दिल का दर्द से,
दर्द का एहसास से,
एहसास का जज़्बात से......
आंसुओं से एक रिश्ता है,
आंसुओं में एक रिश्ता है
~~पायल~~

अन्तर्द्वन्द्व

भरा हुआ है इस दिल में गुबार इतना
मानो ज्वालामुखी में उफनता लावा जितना
डोलती जा रही है धरती, गिर रही हैं चट्टानें
तहस नहस न हो जाए सब, सोचता मन क्यों इतना
टूटा जाता है अब बाँध सब्र का इतना
गूंजती हुई हैं खामोशियाँ, सहमी हुई हैं दिशायें
अंतर्मन से रिसता लहू है, यह मन डरता क्यों इतना
पूछो इन वृक्षों से है सहा प्रहार कितना
एहसास की तपन ,झुलसती हुई हैं आशाएं
बीते पतझड़ की आग को, रे मन क्यों याद करे इतना
सावन की शीतल लहरों ने बुझाना भी चाहा कितना....

~~ पायल~~

मतिभ्रम

एक ख़याल तन्हा कर जाता है

कुछ धुंधलका सा छा जाता है

एक धड़कन सुनाई देती है

एक चेहरा दिखाई देता है

कभी अपना सा नज़र आता है

कभी सवाल बनकर रह जाता है

एक कशमकश सी है

अपना है या सपना है कोई?!?

~~पायल~~

जुगनू


एक जुगनू अँधेरी रात में सलीका सिखा गया
अंधेरों को रोशन करने का तरीका बता गया......
अंतस की ज्वाला को प्रज्वलित करते हुए
एक चिंगारी को जैसे शोला बना गया......
अनजानी भीड़ में ख़ुद को तलाशते हुए
ख़ुद से ख़ुद की पहचान करा गया.......
अनचाहे गिले शिकवे भुलाते हुए
कुछ भटकते हुए सवालों के जवाब बता गया.......
फिर मंद ही मंद मुस्कुराते हुए
आस का एक बुझा हुआ दीपक जला गया........
~~पायल~~