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सुनो,कहा था ना मैंने?

सुनो,
ऐसे ही थोड़ी कहती थी मैं 
कि तुम नहीं समझोगे!

कितने ख़याल थे
छुपे  हुए किसी कोने में,
कुछ अधखिले,
कुछ मुरझाये,
जज़्बातों  की तरह।

आज बरसों बाद, 
उन्ही ख्यालों को समेटते हुए, 
उलझे हुए  
इस कहानी के धागे में,
 शब्दों को पिरोने
की नाकाम कोशिश
करती  हूँ।

एक मुस्कुराती हुई नज़्म 
का इंतज़ार है।
उदासी की लकीरों के पीछे
से झांकती नम आँखें
अचानक झंझोर कर
जगा जाती हैं ।
आजकल कुछ बदल गया है,
 मैं ऐसी ही तो थी!

सुनो,
कहा था ना मैंने?
कुछ दबी सी आवाज़ में?
बस इतना ही याद है मुझे!
~~ पायल ~~ 

खट्टी मीठी ज़िन्दगी के भूले बिसरे पल...

खट्टी मीठी ज़िन्दगी के भूले बिसरे पल
यादों के झरोखे से आज झांकते हैं
:
:
सीने में दबे हुए अनगिनत जज़्बात
वक्त के साथ धुंधले नज़र आते हैं
:
:
ओस में भीगे सीले हुए पत्ते
मोती बन आज आंखों में टिमटिमाते हैं
:
:
सागर में निरंतर उठते ज्वार भाटे
अक्सर साहिल पर आकर शांत हो जाते हैं
~~पायल~~

सुर संग तान मधुर घुले जब..

सुर संग तान मधुर घुले जब
प्रीत अधूरी गीत बन जाये…
धुआं उठे जब आहों से तब
हिमनदी भी पिघली जाए

धरती संग गगन झूमे जब
सागर यूँ हिचकोले खाए
सीने में उठे तूफ़ान तब
जीवन नय्या डूबी जाए

सांझ ढले दिया जले जब
रंज-ओ-ग़म दूर हो जाए
पलकों पर मोती सजे तब
सतरंगी फ़िज़ा में घुल जाए

यादों के गलियारे में जब
तारों की महफ़िल सज जाये
चाहत के मेले लगे तब
दूर कहीं मेघ नीर बरसाए

~~पायल~~

उलझन....

ना जाने क्यूँ यह ख्याल आया
और अंतस में घर कर गया
दूर पड़ा एक कागज़ का टुकड़ा
कुछ सुनी हुई कहानियाँ सुना रहा था
अपने हाथ में उठा कर
अपनी हथेली से दबाकर
उसकी सिलवटों को हटाया
और गौर से देखा
तो परछाइयों में क़ैद
छटपटाता हुआ एक साया नज़र आया
जो अनायास ही चीखने चिल्लाने लगा

वो देखना चाहता था
अपनी आँखे मूँद
महसूस करना चाहता था
रुकी हुई धड़कन को
उड़ना चाहता था
पंछियों के संग
गाना चाहता था
कुछ अनसुने गीत
पहचानना चाहता था
ख़ुद को..

पर बदली हुई गति
से आख़िर बदल ही गया वो साया
अंधेरों में भी
महसूस कराता था जो अपना वजूद
आज सिलवटों में लिपटा हुआ
अधूरा सा दिखता है अब
पड़ा हुआ है कहीं दूर
अंधेरों में ढूंढता है अब अपना वजूद..
ना जाने क्यूँ यह ख्याल आया
और अंतस में घर कर गया !
~~पायल~~

जाने कहाँ....

विचलित मन
एक घूमता हुआ आइना सा
भटकता हुआ
अठखेलियाँ करता,
अधीर,असहाय सा
अक्स दिखता उसमे निराकार
कभी कुछ मेरे जैसा
कभी दिखता वो बिल्कुल तुमसा

पगला सा मन
न कोई विकल्प है
न कोई समाधान
फिर भी निकल पड़ता है
बदहवास सा किसी खोज में
दूर जाने क्या तलाशता हुआ
जैसे मैं निकल पड़ी हूँ
जाने कहाँ यूँ ही लिखते लिखते..
~~पायल~

एहसास

ज़ख्म कुछ गहरे मिले इस दिल को
दर्द का इलाज करती हूँ
मेरे हर शिकवे में तू ही है
तेरे हर गिले में मैं ही हूँ


ढूंढती हूँ आज मैं ख़ुद को
ख्यालों में फिर खो जाती हूँ
तू हर पल मेरे पास है
मैं हर पल तेरे साथ हूँ


कोई क्या जाने इस एहसास को……
महसूस कभी यूँ करती हूँ….
जैसे कहीं तू मुझ में रहता है
और कहीं मैं तुझ में रहती हूँ….

~~पायल~~

दायरा


सिमटे हुए दायरों में कभी
कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते हैं
जो न तो भूले जाते हैं
और न ही याद आते हैं


कहना चाहो कुछ भी
तो और चुप हो जाते हैं
बात पूरी हो जाती है
शब्द कहीं खो जाते हैं

कुछ अनसुनी बातों में
मतलब उलझ से जाते हैं
वक्त के सैलाब में
रिश्ते गुम हो जाते हैं...
~~पायल~~

..एक रिश्ता

आंसुओं से एक रिश्ता है,
आंसुओं में एक रिश्ता है
रिश्ता जज़्बात का,
रिश्ता एहसास का,
आंखों का दिल से,
दिल का दर्द से,
दर्द का एहसास से,
एहसास का जज़्बात से......
आंसुओं से एक रिश्ता है,
आंसुओं में एक रिश्ता है
~~पायल~~

अन्तर्द्वन्द्व

भरा हुआ है इस दिल में गुबार इतना
मानो ज्वालामुखी में उफनता लावा जितना
डोलती जा रही है धरती, गिर रही हैं चट्टानें
तहस नहस न हो जाए सब, सोचता मन क्यों इतना
टूटा जाता है अब बाँध सब्र का इतना
गूंजती हुई हैं खामोशियाँ, सहमी हुई हैं दिशायें
अंतर्मन से रिसता लहू है, यह मन डरता क्यों इतना
पूछो इन वृक्षों से है सहा प्रहार कितना
एहसास की तपन ,झुलसती हुई हैं आशाएं
बीते पतझड़ की आग को, रे मन क्यों याद करे इतना
सावन की शीतल लहरों ने बुझाना भी चाहा कितना....

~~ पायल~~

मतिभ्रम

एक ख़याल तन्हा कर जाता है

कुछ धुंधलका सा छा जाता है

एक धड़कन सुनाई देती है

एक चेहरा दिखाई देता है

कभी अपना सा नज़र आता है

कभी सवाल बनकर रह जाता है

एक कशमकश सी है

अपना है या सपना है कोई?!?

~~पायल~~