बस यूँ ही

दिन के पहले पहर में
उजले सपनों की चादर ओढे
जब नींद गहराती है
मदहोश कर जाती है
तभी खिड़की पर दस्तक देती
उजाले की पहली किरण
चिडियों की चहचहाहट और
घास पर बिछी ओस की बूँदें
खींचती हैं मुझे अपनी ओर
खिड़की खोल
जब देखती हूँ
एक सर्द हवा का झोंका
मेरे बालों को छूता हुआ
गुज़र जाता है
और फिर अचानक
उस एक पल में
फूलों की महक से
मेरा कमरा भर जाता ही
उस महक में ढूंढती हूँ
एक कोमल सा स्पर्श
कुछ गुज़रे हुए पल
कुछ महकी हुई यादें
कुछ बहकी सी बातें
कुछ ख़ास नहीं
बस यूँ ही....:)
~~पायल~~

6 comments:

  1. Bahut Barhia... aapka swagat hai...

    thanx
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  2. उस महक में ढूंढती हूँ
    एक कोमल सा स्पर्श
    कुछ गुज़रे हुए पल
    कुछ महकी हुई यादें
    कुछ बहकी सी बातें
    कुछ ख़ास नहीं..

    बहुत खूब! स्वागत है आपका.

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  3. पायल जी की इस रचना में भाव मिला कुछ खास।
    और सबेरे के चित्रण का बेहतर है एहसास।।

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  4. दिन के पहले पहर में
    उजले सपनों की चादर ओढे
    जब नींद गहराती है
    मदहोश कर जाती है
    तभी खिड़की पर दस्तक देती
    उजाले की पहली किरण
    चिडियों की चहचहाहट और
    घास पर बिछी ओस की बूँदें
    खींचती हैं मुझे अपनी ओर
    खिड़की खोल
    जब देखती हूँ

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