सावन

तपते रेगिस्तान में
जब कोई छेड़ता मेघ मल्हार
बदरी छाती नयनों में
बरसता सावन ज़ार ज़ार
कोपलें फूटतीं
धरती झूम उठती
जब आस बंधाते उड़ते बादल
उड़ेलते अपना प्यार
~~पायल~~

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