बारिश


 बारिश..
 कितना कुछ सिमटा हुआ है
 इस एक शब्द में...
मौसम का बदलाव ,
मिट्टी की सौंधी खुशबू..
लहलहाती फ़सलें और हरियाली..
भड़ास निकालते गरजते बादल...
कौंधती बिजली
कौन जाने कितना कुछ 
समेटे हैं अपने भीतर
सिहर जाती हूँ मैं ये सोचकर..

मौसम की पहली बारिश में भीगते ही 
न जाने कितनी उम्मीदें ,कितने सपने,
कितनी यादें और कितने एहसास
डबडबाई आँखों में 
पल भर में झिलमिलाने लगते हैं ..
सब कुछ अपने भीतर 
समेटे आती है ये बारिश..
बरसती है,भिगाती है,
घर का आँगन
भीतर ही भीतर कुछ कहता है मन
न जाने कितनी यादें ..

और बस !
 बरसने लगती है बारिश ..
रिमझिम ..
सकुचाती, सहमी हुई  बारिश ..
सूनी सड़कों पर 
बारिश से बचते लोग
क्या कभी समझ पाएंगे
क्या कहती है ये बारिश!?
~~ पायल ~~ 

3 comments:

  1. wah wah kya khoob hai ye baarish..
    kabhi hasati kabhi rulati ye baarish..
    dil mein anjaan chehra si hai ye baarish..
    khushbu udathi man ko behlati, sehrati ye baarish..

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  2. AnonymousMay 30, 2013

    sundar rachna

    utpal

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  3. Barrish,
    Wo bachpan,
    wo kagaj ka nau,
    wo miya malhar,
    woh jara si kampan,
    jara si chahot....

    Aur wo...door kahin....

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